Detailed Notes on वैष्णव धर्म

इस धर्म या सम्प्रदाय के साधू-संन्यासी सिर मुंडाकर चुटिया रखते हैं.

इस प्रकार हम देखते हैं कि वैष्णव धर्म का विकास चार श्रेणियों में हुआ। यह पहले उत्तरी भारत से प्रारम्भ हुआ और फिर दक्षिण भारत, बंगाल, महाराष्ट्र और गुजरात आदि स्थानों में विकसित होता रहा। इसके अन्तर्गत विष्णु के दो प्रमुख अवतार राम और कृष्ण की अनेक रूप में उपासना प्रचलित हुई। धीरे-धीरे वे कई उपशाखाओं और रूपों में परिवर्तित होती गई। आज वैष्णव धर्म का विकास और क्षेत्र कितना विशाल है यह कहा नहीं जा सकता।

भास्कराचार्य के अनुयायी उनको सूर्य का अवतार मानते हैं और कहते हैं कि जैन, बौद्ध आदि वेद विरुद्ध मतों को निर्धारित करने के लिए उनका अवतार हुआ था। भक्त माल में उनके सम्बन्ध में एक अलौकिक कथा लिखी है। कहते हैं कि एक दिन कोई जैन साधु उनके पास आये और जैन धर्म के सिद्धान्तों पर बातचीत करने लगे। विचार करते करते जब शाम को गई तो भास्कराचार्य उठे और अपने आश्रम से कुछ खाद्य सामग्री उस अभ्यागत के लिए ले आये। पर जैन धर्म वाले रात्रि में भोजन नहीं करते- इससे उस अभ्यागत ने सूर्यास्त होता देख भोजन करने से इनकार कर दिया। इस पर भास्कराचार्य ने सूर्य भगवान से कुछ देर ठहरने की प्रार्थना की। कहते हैं कि जब तक वह अतिथि भोजन करता रहा जब तक सूर्य का प्रकाश सामने ही लगे हुए एक नीम के पेड़ पर दिखाई पड़ता रहा। उसी दिन से भास्कराचार्य, निम्बार्क अथवा निम्बादित्य कहलाये और उनका सम्प्रदाय भी उसी नाम से प्रसिद्ध हुआ। आजकल इस check here सम्प्रदाय के अनुयायियों की संख्या अधिक नहीं है तो भी भारत के पश्चिम तथा दक्षिण प्रांतों के सिवाय वे मथुरा के आस-पास तथा बंगाल में पाये जाते हैं। इनकी प्रधान गद्दी मथुरा के पास ध्रुव क्षेत्र में है।

वैष्णव धर्म के सिद्धान्तों का उल्लेख करते हुए विष्णु के अवतारों की विवेचना

जानकारीको लागि प्रयोगका सर्तहरू हेर्नुहोस्।

In Vaishnava theology, which include is introduced while in the Bhagavata Purana plus the Pancaratra, Each time the cosmos is in disaster, normally because the evil has developed stronger and has thrown the cosmos from its balance, an avatar of Vishnu seems in a fabric variety, to destroy evil and its resources, and restore the cosmic stability amongst the everpresent forces of good and evil.

विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख किस पुराण में मिलता है – मत्स्यपुराण

वैष्णव धर्म में विष्णु को गुप्तों ने अपने आराध्य देव के रूप में स्वीकार किया अतः उनके वाहन गरूड़ को भी समान स्थान दिया। गरूड़ विष्णु के वाहन के रूप में महाकाव्य काल के पूर्व नहीं था। महाकाव्य काल में ही वह विष्णु का वाहन माना गया।

The Mahabharata is centered all-around Krishna, provides him as the avatar of transcendental supreme currently being.[177] The epic facts the Tale of the war amongst excellent and evil, both sides represented by two family members of cousins with prosperity and ability, a person depicted as driven by virtues and values although other by vice and deception, with Krishna enjoying pivotal purpose inside the drama.[178] The philosophical emphasize in the get the job done will be the Bhagavad Gita.[179][120]

कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।। ओउम जय।।

(“dualism”) on the philosopher Madhva, the belief that God along with the soul are independent entities and the soul’s existence is depending on God. The Pushtimarg sect maintains the shuddhadvaita

वैष्णव धर्म / वैष्णव सम्प्रदाय / भागवत धर्म

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वैष्णव धर्म के अन्तर्गत विष्णु, नारायण, वासुदेव एवं श्री कृष्ण के नाम पर पर्वतीय काल में चार सम्प्रदायों का विकास हुआ। ये चार विशिष्ट सम्प्रदाय वैष्णव सम्प्रदाय के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्रथम श्रोत परम्परा, द्वितीय स्मार्त परम्परा, तृतीय पाञ्चरात्र परम्परा और चतुर्थ सात्वत आगम।

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